good to read it....
छोटी -छोटी छितराई यादें ...बिछी हुई हैं लम्हों की लॉन पर
नंगे पैर उनपर चलते -चलते ..इतनी दूर चले आये
की अब भूल गए हैं की जूते कहाँ उतारे थे .
एडी कोमल थी , जब आये थे .
थोड़ी सी नाज़ुक है अभी भी .
और नाज़ुक ही रहेगी
इन खट्टी -मीठी यादों की शरारत जब तक इन्हें गुदगुदाती रहे .
सच , भूल गए हैं की जूते कहाँ उतारे थे .
पर लगता है ,अब उनकी ज़रुरत नहीं .
-अमिताभ भट्टाचार्य -फिल्म उड़ान 2010
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